महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की बाल कविता - 'कोकिल'
कोकिल अति सुन्दर चिड़िया है,
सच कहते हैं अति बढ़िया है।
जिस रगत के कुवर कन्हाई,
उसने भी वह रगत पाई।
बौरों की सुगध की भाती,
कुहू-कुहू यह सब दिन गाती।
मन प्रसन्न होता है सुनकर,
इसके मीठे बोल मनोहर।
मीठी तान कान में ऐसे,
आती है वशीधुनि जैसे।
सिर ऊंचा कर मुख खोलै है,
कैसी मृदु बानी बोलै है!
इसमें एक और गुण भाई,
जिससे यह सबके मन भाई।
यह खेतों के कीड़े सारे,
खा जाती है बिना बिचारे।
कोकिल अति सुन्दर चिड़िया है,
सच कहते हैं अति बढ़िया है।
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